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यमराज की मृत्यु

वेद कहते हैं कि सृष्टि के सुचारू रूप से संचालन के लिए परमेश्वर ने भिन्न भिन्न कार्यों के लिये अनेक देवी देवताओं की नियुक्ति की थी।
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। जैसा कि सभी जानते हैं मृत्यु के देवता यमराज हैं और वे यमलोक पर राज करते हैं।
एक समय की बात है सूर्यदेव और विश्वकर्मा जी की पुत्री संज्ञा के पुत्र यमराज,स्वयं ही मृत्यु को प्राप्त हुए थे।उसकी कथा इस प्रकार है–
पुराणों के अनुसार किसी समय विदर्भ देश में एक प्रतापी राजा थे जिनका नाम था राजा श्वेत।राजा श्वेत शिवजी जी बड़े भक्त थे।पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने राज सिंहासन सम्हाला और धर्मानुकूल शासन किया।एक दिन उन्हें उनकी मृत्यु की तिथि का  ज्ञान हुआ तो उनके मन में विरक्ति हो गई  और अपने अनुज सुरथ को राजभार सौपकर वे तपस्या के विचार से गोदावरी के तट पर रहने लगे।
वही एक गुफा में शिवलिंग बनाके आराधना करने लगेऔर महामुनि बन गए।शिव पूजन में महामुनि श्वेत ऐसे लीन रहने लगे कि उन्हें आभास ही नही हुआ कि पृथ्वी पर उनकी आयु पूर्ण हो चूकी है।
   जब उनकी मृत्यु का समय निकट आया तो यमराज ने यमदूतों को उनके प्राण हरने भेजा।जब यमदूत गुफा के द्वार पर पहुंचे तो शिव मंत्रों के प्रभाव के कारण अंदर प्रवेश नही कर पा रहे थे।उन्हें गुफा के बाहर ही रुककर प्रतिक्षा करना पड़ा।जब महामुनि श्वेत गुफा के बाहर आये तो मृत्युदेव नामक यमदूत ने आगे बढ़कर उन्हें अपने साथ ले जाने की चेष्टा की तो तप के प्रभाव से महामुनि की रक्षार्थ शिवजी के गण उपस्थित हो गए और भैरो ने उनका सिर काट दिया।
उधर यमलोक में यह समाचार मिलने पर यमराज ने बहुत क्रोध से स्वयं गोदावरी तट की ओर प्रस्थान किया।अपने भैंसे पर सवार हो कर यमदंड हाथ में लिए वो निकल पड़े।मृत्यु का समय बीत रहा था इसलिये जब यमदेवता ने महामुनि को बलपूर्वक साथ ले जाना चाहा तो सेनापति कार्तिकेय भी उनकी रक्षा के लिए आ गए और उन दोनों में घमासान युद्ध हुआ।उन्होंने यम पर शक्ति अस्त्र से प्रहार किया जिससे यमराज की मृत्यु हो गई।
  जब सूर्यदेवता को अपने पुत्र यम की मृत्यु के बारे में पता चला तो उन्होंने ध्यान लगाकर देखा कि शिवजी की इच्छा के विरुद्ध यमदेव ने श्वेत मुनि के प्राण लेना चाहें इस कारण उनकी यह गति हुई। वे भगवान विष्णु की शरण में गये तब ब्रम्हदेव और अन्य देवगण भी वहाँ उपस्थित हो गए और विनीत स्वर में कहा यमराज का इस तरह वध होना सही नही है ,उनको स्वयं महादेव ने जीवों की मृत्यु का कार्यभार सौंपा था ,और लोकपाल बनाया।देवों की बात सुनकर विष्णु जी ने सूर्यदेव को शिवजी को प्रसन्न करने के निमित्त तपस्या करने की सलाह दी।
     सूर्यदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा तब सूर्य देव ने कहा कि मेरे पुत्र यमराज की मृत्यु से पृथ्वी असंतुलित हो जायेगी और अव्यवस्था हो जायेगी।उन्होंने  संतुलन बनाने हेतु यमराज को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की।शिवजी ने व्यवस्था बनी रहे इसके लिए नंदी से गौतमी नदी का जल मंगवाया और यमराज के पार्थिव शरीर पर छिड़का जिससे वह पुर्नजीवित हो गए।
      तब शिवजी ने उनसे कहा कि मेरे और विष्णु जी के जो भक्त है उनके स्वामी स्वयं हम है और मृत्यु का उन पर कोई अधिकार नही है।
     तब यमदेव ने शिवजी को प्रणाम किया और फिर महामुनि श्वेत से कहा कि सम्पूर्ण लोक में आपने मुझ पर विजय पा ली है,आज से में आपका अनुगामी हूँ।तब महामुनि ने यमदेव से विनयपूर्वक कहा कि हम भक्त तो अपने भगवान की अर्चना में ही अपना जीवन सार्थक मानते हैं।आप तो महान हैं ,आपके भय से ही तो मानव परमात्मा की शरण लेते है और सद्कार्य से विमुख नही होते।उनकी बातें सुनकर यमदेव प्रसन्न हुए और सभी देव संतुष्ट होकर अपने अपने लोक लौट गए।
     महादेव ने श्वेत मुनि की लिंग उपासना और परमात्मा पर श्रद्धा और विश्वास से प्रसन्न होकर शिवलोक में स्थान दिया।
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(यह प्रसंग पौराणिक कथाओं पर आधारित है,किसी प्रकार की त्रुटि के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ।)


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3 Comments

Shalini Sharma

05-Oct-2021 01:30 PM

Very nice

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Fiza Tanvi

04-Oct-2021 03:32 PM

Nice

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Swati chourasia

01-Oct-2021 05:12 PM

Very nice 👌

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